सरस्वती शिशु मंदिर शहर का प्रमुख स्कूल है जो मुख्य सड़क से लगभग 150 मीटर की दूरी पर स्थित है। पुलिस स्टेशन हमारे स्कूल से 100 मीटर की दूरी पर स्थित है। हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ मैं योगा एवं खेल के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है |
नगर के विद्यालय सरस्वती शिशु / विद्या मंदिर मझौली में गणतंत्रता दिवस समारोह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।जिसमें शंकरगढ़ बाल कल्याण समिति के व्यवस्थापक श्री ओमप्रकाश पटेल एवं प्राचार्य श्री चन्द्र कान्त मिश्रा द्वारा झंडा वंदन किया गया। विद्यालय के बच्चों द्वारा भारत माता की जय घोष के साथ नगर के प्रमुख मार्गों से प्रभात फेरी निकली गई। विद्यालय के छोटे छोटे बच्चों की देशभक्ति एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों का मन मोह लिया। कार्यक्रम के अंत मे उपस्थित अतिथियों, नगर के वरिष्ठजनों, एवं महानुभवों का विद्यालय परिवार की ओर से आभार प्रदर्शन सत्यपाल सिंह क्षत्रिय ने किया। इस पावन पर्व पर समस्त आचार्य दीदी परिवार का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ।
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विद्यालय का इतिहास दि. 01.11.2019
विद्याभारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान नई दिल्ली के मार्गदर्शन व सरस्वती शिक्षा परिषद म.प्र. से सम्बध्द सरस्वती शिशु मंदिर किरनापुर का शुभारम्भ दि. 01.07.1987 को कोटेश्वर ज्ञानपीठ समिति लांजी द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर लांजी के शाखा के रुप में मान. श्री ओमप्रकाश जी खरगाल मान. श्री खुशालराम भाउ बहेकारजी व मान. श्री संतोष कुमार जी शर्मा के द्वारा किया गया। प्रारम्भिक अवस्था में विद्यालय के दायित्ववान कार्यकर्ताओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पडा। लगभग एक डेढ वर्षोे तक प्रधानाचार्य का वेतन सरस्वती शिशु मंदिर लांजी ने दिया। 22 अप्रैल 1996 को मां किरनाई देवी बाल कल्याण समिति किरनापुर का विघिवत गठन किया गया जिसका पंजीयन क्रमांक जे. बी. 2615 दि. 22.04.1996 है। इस समिति का गठन हो जाने के बाद कोटेश्वर ज्ञानपीठ समिति लांजी ने मार्च 1996 में सरस्वती शिशु मंदिर किरनापुर का हस्तांतरण मां किरनाई देवी बाल कल्याण समिति किरनापुर को कर दिया । इस समिति के प्रथम प्रबन्धकारिणी में अध्यक्ष स्वर्गीय श्री खुशालराम भाउ बहेकारजी सचिव मान. श्री जी. पी. श्रीवास्तवजी व कोषाध्यक्ष श्री संतोष कुमार शर्माजी रहे एवं मान. श्री ओमप्रकाश जी खरगाल का संरक्षक के रुप में सतत मार्गदर्शन मिलता रहा।
प्रारम्भ में विद्यालय 1 वर्ष तक 39 छात्रों की दर्ज संख्या के साथ किराये के छोटे कच्चे मकान में पुराने बस स्टेंड के ेसमीप लगता रहा। दूसरे वर्ष 1988 में किरनापुर स्थित विद्यालय भूमि कच्चे मकान सहित निशुल्क विद्यालय लगाने के लिए प्राप्त हुई।समय-समय पर इस भवन भूमि को दान में प्राप्त करने के प्रयास चलते रहे ईश्वरीय कृपा से 20 सित.1993 को विद्यालय भवन भूमि के मालिक श्री रामेश्वरजी मंुदडा ने अपने माताजी श्रीमती कृष्णाबाई नरसिंगदास मुंदडा के स्मृति में कच्चे मकान सहित यह भूमि विद्यालय को दान र्में दे दी । समाज से धन संग्रह कर विद्यालय के पश्चिम में निर्मित भवन का नींव निर्माण का कार्य किया गया। सन 2004 में तत्कालीन सांसद मान.प्रहलाद पटेलजी द्वारा सांसद निधि से 4 कमरे 01 बरामदा व बाउन्ड्रीवाल 04 लाख 23 हजार की लागत से बनवा दिया। इसी बीच हम सभी को एक दुर्घटना का सामना भी करना पडा दि. 13.10.2011 को विद्यालय परिसर के मध्य में स्थित कच्चे मकान की छत गिर गई जिसमें 33 बच्चे मलबे में दब चुके थे फिर भी माॅ किरनाई देवी की कृपा व निस्वार्थ भाव की सेवा का ही प्रतिफल है कि कोई भी बच्चा हताहत नही हुआ इस संकट की घडी में आम जनता कोबरा बटालियन का सराहनीय सहयोग रहा। इस भवन के विस्तार में मान. श्री जी. पी.श्रीवास्तवजी का भी उल्लेखनीय योगदान रहा आपने समय-समय पर 50 हजार से 01 लाख तक की राशि बैंक ब्याज की दर से उघार दिया साथ ही ब्याज से प्राप्त राशि को ेभी सामग्री के रूप में दान में दे दिया। सरस्वती शिक्षा परिषद जबलपुर ने भी डेढ लाख रू ब्याजमुक्त राशि उधार दिया था जिसे वापस कर दिया गया। इस प्रकार पुराने विद्यालय के कक्षा कक्षों का निर्माण कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है जिसमें 20 शिक्षण कक्ष व 01 प्राचार्य कक्ष है किन्तु आज भी वंहा एक सर्वसुविधा युक्त शौचालय व यूरीनल की महती आवश्यकता है। वर्तमान में के. जी. 1 से 10 वीं तक कुल 1156 भैया/बहिन अध्ययनरत है विद्यालय भवन के इतने विस्तार के बावजूद भी हमें भैया/बहिनों के प्रवेश पर रोक लगाते हुए विद्यालय दो पाली में लगाना पडता है।इस कमी को पूरा करने के लिए जमीन खरीदना अति आवश्यक था
अतः किरनापुर में जमीन अत्यधिक मंहगी होने के कारण किरनापुर से लगी जराही की सीमा में 73 डिसमील जमीन 4,01,500 रूपये (चार लाख एक हजार पांच सौ ) में दि. 16.08.2016 को खरीदी गई।जिसके रजिस्ट्री में 29310 रूपये खर्च आया।विद्यालय के पास निर्माण कार्य के लिए भूमि नही थी भूमि की व्यवस्था हो जाने के बाद नये भवन का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया गया। प्रस्तावित दो मंजिला भवन के लिए,शासन द्वारा जन भागीदारी मद से 10 लाख रूपये और मान. बोधसिेह भगत सांसद, बालाघाट सिवनी लोकसभा क्षेत्र द्वारा अपने सांसद निधि से 10 लाख रूपये तथा विद्यालय कोष से 25 लाख रूपये इस प्रकार कुल 45 लाख रूपये की लागत से बनकर तैयार हुआ । जिसका लोकार्पण कार्यक्रम 12 दिसम्बर 2017 को सम्पन्न हुआ। वर्तमान में कक्षा 6 से 10 नये भवन में संचालित हो रही है।
किसी भी संगठन या संस्था में सकारात्मक बदलाव तभी सम्भव है जब संगठन के सभी सदस्यों में तालमेल व विश्वास बना रहे और हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे विद्यालय के सभी सदस्य आचार्य बंधु भगिनि अपेक्षित वातावरण निर्माण में पूर्ण सहयोग प्रदान करतें हैं
धन्यवाद
दिनेश गिरी गोस्वामी
प्राचार्य
एक बार स्वामी विवेकानंद जी अपने आश्रम में सो रहे थे। कि तभी एक व्यक्ति उनके पास आया जो कि बहुत दुखी था और आते ही स्वामी विवेकानंद जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला महाराज मैं अपने जीवन में खूब मेहनत करता हूँ हर काम खूब मन लगाकर भी करता हूँ फिर भी आज तक मैं कभी सफल व्यक्ति नहीं बन पाया।
उस व्यक्ति कि बाते सुनकर स्वामी विवेकानंद ने कहा ठीक है। आप मेरे इस पालतू कुत्ते को थोड़ी देर तक घुमाकर लाये तब तक आपके समस्या का समाधान ढूँढ़ता हूँ इतना कहने के बाद वह व्यक्ति कुत्ते को घुमाने के लिए चल गया। और फिर कुछ समय बीतने के बाद वह व्यक्ति वापस आया। तो स्वामी विवेकानंद जी ने उस व्यक्ति से पूछ की यह कुत्ता इतना हाँफ क्यों रहा है। जबकि तुम थोड़े से भी थके हुए नहीं लग रहे हो आखिर ऐसा क्या हुआ ?
इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि मैं तो सीधा अपने रास्ते पर चल रहा था जबकि यह कुत्ता इधर उधर रास्ते भर भागता रहा और कुछ भी देखता तो उधर ही दौड़ जाता था. जिसके कारण यह इतना थक गया है ।
इसपर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराते हुए कहा बस यही तुम्हारे प्रश्नों का जवाब है. तुम्हारी सफलता की मंजिल तो तुम्हारे सामने ही होती है. लेकिन तुम अपने मंजिल के बजाय इधर उधर भागते हो जिससे तुम अपने जीवन में कभी सफल नही हो पाए. यह बात सुनकर उस व्यक्ति को समझ में आ गया था। की यदि सफल होना है तो हमे अपने मंज़िल पर ध्यान देना चाहिए।
कहानी से शिक्षा
Read More...स्वामी विवेकानंद जी के इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें जो करना है। जो कुछ भी बनना है। हम उस पर ध्यान नहीं देते है , और दूसरों को देखकर वैसा ही हम करने लगते है। जिसके कारण हम अपने सफलता के मंज़िल के पास होते हुए दूर भटक जाते है। इसीलिए अगर जीवन में सफल होना है ! तो हमेशा हमें अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए !।
स्वदेशी का अर्थ है - 'अपने देश का'। इस रणनीति के लक्ष्य चीन में बने माल का बहिष्कार करना तथा भारत में बने माल का अधिकाधिक प्रयोग करके साम्राज्यवादी चीन को आर्थिक हानि पहुँचाना व भारत के लोगों के लिये रोजगार सृजन करना था।
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कोविड-19 महामारी के कारण विद्यालय की कक्षाऍ ऑनलाईन माध्यम से चालू है। अत: सभी भैया बहिन अपनी-अपनी कक्षाऍ ध्यानपूर्वक गूगल मीट के माध्यम से पढे।
घर पर रहे। सुरक्षित रहें।
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किसी भी तरह की जानकारी के लिए व्हाटसअप नंबर 9893206821 पर जानकारी दे सकते है या ssmv36@gmail. com पर मेल कर सकते है हमारी IT टीम आपसे संपर्क कर पूर्ण जानकारी प्रदान करेगी
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अवसर
मौका सिर्फ एक बार आती है ""जिंदगी हो या मौत""
एक बार एक लड़का जिंदगी से बहुत परेशान, गुरुजी के पास जाता है और बोलता है, गुरु जी मैं बहुत ज्यादा परेशान हूं मुझे पैसों की जरूरत है। मैं चाहता हूं कि मेरे माता-पिता खुश रहे और पूरा संसार घूमे परंतु यह सब बिना पैसों के संभव नहीं है। तब गुरुजी ने कहा तुम मेरे साथ आओ। गुरु जी उसे ऐसी जगह ले गए जहां सारे कंकड़ पड़े थे गुरु जी ने उस लड़के से कहा कि इतने सारे कंकड़ में से कोई एक ऐसा कंकड़ है जो किसी भी वस्तु को सोने में बदल सकता है लेकिन उस कंकड़ की पहचान उसके तापमान से होगी। गुरुजी ने कहा इन सभी कंकालों को हाथ में पकड़ कर महसूस होगा। यदि वह कंकड़ तुम्हें मिल जाए तो तुम अपनी जिंदगी में जितना चाहो उतना धन अर्जित कर सकते हो। वह लड़का बहुत खुश हो गया। उसने सोचा कि यह तो केवल कुछ ही महीनों की बात है। उसने कहा कि रोज इस कार्य को में 4 घंटे दिया करेगा परंतु वह लड़का नहीं जानता था कि जो कार्य गुरु जी ने उसे सौंपा है वह सोच समझकर नहीं भी सौंपा है। उस लड़के ने यह कार्य शुरू कर दिया। वह एक एक कंकड़ हाथ में लेता था और जो कंकड़ ठंडा महसूस होता था उसे समुद्र में फेंक देता था। यदि वह लड़का ठंडा कंकड़ समुद्र में ना फेंके तो वह अन्य कंकडों में मिल जाता था यह कार्य वह लगभग 4 महीनों से कर रहा था। वह यह कार्य बहुत तेजी से करने लगा था लेकिन धीरे-धीरे वह कंकड़ को ध्यान से परखना कम करते जा रहा था। उसकी ऐसी आदत हो गई थी कि वह कंकड़ हाथ में लेता था और समुद्र में फेंक देता था।
इतनी मेहनत के बाद उसे वह गर्म कंकड़ मिल गया और वह कंकड़ भी महसूस हुआ परंतु उसकी यह आदत हो गई थी कि वह कंकड़ को हाथ में लेता था और फेंक देता था इसलिए उस कंकड़ को भी उसने फेंक दिया। कंकड़ फेंकने के बाद उसने अपनी अंगुली चबा ली और कहा कि अरे यह मैंने क्या कर दिया उसे बहुत पछतावा हुआ।
सीख - जिस समय आपने अपने हर दिन को हल्के में लेना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे हल्के में लेना आपकी आदत बन जाएगी और जब आप कामयाबी वाला दिन आएगा जब आप उसे भी हल्का दिन समझ कर गवा देंगे। फिर बाद में आप सोचोगे कि वह दिन तो साधारण दिन की तरह ही नहीं था ।
वह गर्म कंकड़ एक अवसर है और आप यह सारे कंकड़ दिन है। वह गर्म कंकड़ कब आपके साथ में आएगा यह आप नहीं जानते लेकिन आपको हर कंकर को परखना है अर्थात हर दिन कुछ ना कुछ सीखना है।
किसी ने कहा है कि कामयाबी पर ध्यान मत दो यदि तुम मेहनत करोगे तो कामयाबी स्वयं ही तुम्हारे पास आएगी।
""कहानी कैसा लगा आप हमको जरूर बताएं""
-GANESH KUMAR-
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शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो हमें सफलता की ओर अग्रसर करता है। शिक्षा ही संसार में हमें श्रेष्ठ बनाती है सिर्फ किताबी ज्ञान ही शिक्षा नहीं होता। अपितु हमारा मानसिक विकास भी सफलता के लिए आवश्यक है। सिर्फ कल्पना करने से हमें सफलता नहीं मिल सकती उन सफलताओं को पूरा करने के लिए हमें कड़े परिश्रम की आवश्यकता है। शिक्षा से ही आन बान शान होती है
“एक छात्र की सबसे महत्वपूर्ण गुण यह है कि वह हमेशा अपने अध्यापक से सवाल पूछे।”
“एक व्यक्ति ने कभी गलती नहीं की, जब उसने कभी भी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की यानी जब हम कुछ नया करते है तभी गलतियां होना स्वाभाविक है।”
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विगत 10 वर्षों की भांति इस वर्ष भी कक्षा दसवीं का वार्षिक परीक्षा परिणाम 100% रहा जिसमें 46 भैया बहनों में से 9 भैया बहिनों ने 90% से अधिक अंक प्राप्त किए 43 भैया बहिन प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण रहे द्वितीय श्रेणी में दो भैया बहिन उत्तीर्ण हुए इसके लिए विद्यालय की सरस्वती शिक्षा समिति एवं विद्यालय परिवार के समस्त आचार्य दीदियों द्वारा भैया बहनों के उज्जवल भविष्य की कामना की गई।
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आज विद्यालय में बाल सभा के साथ स्वामी दास तुलसी जयन्ती भी मनाया गया। इस प्रोग्राम सभी भैया/बहनों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
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आज विद्यालय में बाल सभा के साथ स्वामी तुलसी दास जयन्ती भी मनाया गया। इस प्रोग्राम सभी भैया/बहनों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
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आज विद्यालय में बाल सभा के साथ स्वामी तुलसी दास जयन्ती भी मनाया गया। इस प्रोग्रा मे सभी भैया/बहनों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
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आज विद्यालय में बाल सभा के साथ स्वामी तुलसी दास जयन्ती भी मनाया गया। इस प्रोग्राम में सभी भैया/बहनों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
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विद्याभारती संगठन
बालक ही हमारी आशाओं का केंद्र है| वही हमारे देश, धर्म एवं संस्कृति का रक्षक हैं| उसके व्यक्तित्व के विकास में हमारी संस्कृति एवं सभ्यता का विकास निहित है| आज का बालक ही कल का कर्णधार है, बालक का नाता भूमि एवं पूर्वजों से जोड़ना, यह शिक्षा का सीधा, सरल तथा सुस्पष्ट लक्ष्य है| शिक्षा और संस्कार द्वारा हमें बालक का सर्वांगीण विकास करना है.
प्रथम सरस्वती शिशु मंदिर
बस यही स्वप्न लेकर इस शिक्षा क्षेत्र को जीवन साधना समझकर 1952 में, संघ प्रेरणा से कुछ निष्ठावान लोग इस पुनीत कार्य में जुट गए| राष्ट्र निर्माण के इस कार्य में लगे लोगों ने नवोदित पीढ़ी को सुयोग्य शिक्षा और शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए 'सरस्वती शिशु मंदिर'' की आधारशिला गोरखपुर में पांच रुपये मासिक किराये के भवन में पक्की बाग़ में रखकर प्रथम शिशु मंदिर की स्थापना से श्रीगणेश किया. इससे पूर्व कुरुक्षेत्र में गीता विद्यालय की स्थापना 1946 में हो चुकी थी| मन की आस्था, ह्रदय का विकास, निश्चय की अडिगता तथा कल्पित स्वप्न को मन में लेकर कार्यकर्ताओं के द्वारा अपने विद्यालयों का नाम, विचार कर 'सरस्वती शिशु मंदिर' रखा गया. उन्हीं की साधना, तपस्या, परिश्रम व संबल के परिणामस्वरुप स्थान-स्थान पर 'सरस्वती शिशु मंदिर' स्थापित होने लगे.
उत्तर प्रदेश में शिशु मंदिरों के संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी| इनके मार्गदर्शन एवं समुचित विकास के लिए 1958 में शिशु शिक्षा प्रबंध समिति नाम से प्रदेश समिति का गठन किया गया| सरस्वती शिशु मंदिरों को सुशिक्षा एवं सत्संस्कारों के केन्द्र के रूप में समाज में प्रतिष्ठा एवं लोकप्रियता प्राप्त होने लगी| अन्य प्रदेशों में भी जब विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी तो उन प्रदेशों में भी प्रदेश समितियों का गठन हुआ| पंजाब एवं चंडीगढ़ में सर्वहितकारी शिक्षा समिति, हरियाणा में हिन्दू शिक्षा समिति बनी| इसी प्रयत्न ने1977 में अखिल भारतीय स्वरुप लिया और विद्याभारती संस्था का प्रादुर्भाव दिल्ली में हुआ| सभी प्रदेश समितियां विद्याभारती से सम्बद्ध हो गईं|
विद्याभारती महाकोशल प्रान्त
मध्य प्रदेश में सरस्वती शिशु विद्या मंदिर योजना का शुभारंभ 12 फरवरी (बसंत पंचमी) सन 1959 में रीवा नगर से विद्या भारती मध्य क्षेत्र के मार्गदर्शक माननीय रोशन लाल जी सक्सेना द्वारा किया गया । इनके अथक परिश्रम एवं कुशल नेतृत्व में संपूर्ण मध्य प्रदेश (मध्य प्रदेश एवं छतीसगढ़) में विद्यालयों की संख्या दिनों - दिन बढ़ती गई । महाकोशल प्रान्त (मध्यप्रदेश) में सरस्वती शिशु विद्या मंदिर योजना को 50 वर्ष पूर्ण हो गये हैं । जिसके अंतर्गत नगरीय क्षेत्र में सरस्वती शिक्षा परिषद, ग्रामीण क्षेत्र में केशव शिक्षा समिति, वनवासी एवं उपेक्षित क्षेत्र में महाकोशल वनांचल शिक्षा सेवा न्यास द्वारा विद्यालयों का मार्गदर्शन किया जाता है ।
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